आर्थिक मुद्दों से ध्‍यान हटाने केलिय गौरक्षा तो कभी लवजिहाद तो कभी राममंदिर जैसे भावनात्‍मक मुद्दे उठाकर जनता को गुमराह कर रही है मोदी सरकार | - इंक़लाबी कारवाँ

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Thursday, 1 February 2018

आर्थिक मुद्दों से ध्‍यान हटाने केलिय गौरक्षा तो कभी लवजिहाद तो कभी राममंदिर जैसे भावनात्‍मक मुद्दे उठाकर जनता को गुमराह कर रही है मोदी सरकार |

गौरक्षा के नाम पर मानव हत्‍याएं, जनसेवा के नाम पर अडानी-अम्‍बानी की सेवा

कार्टूनिस्‍ट तन्‍मय त्‍यागी की नजर से
आपको पता ही होगा कि 1 अप्रैल के दिन राजस्‍थान में एक मुस्लिम किसान को गौरक्षक गुण्‍डा दलों ने पीट-पीटकर मार दिया था। हरियाणा के मेवात का ये डेयरी किसान पहलू खान 1 अप्रैल के दिन जयपुर के प्रसिद्ध साप्‍ताहिक हटवाडा पशु मेले से डेयरी यानि दुध के धंधे के लिए गाय खरीदकर आ रहा था। ये मेला काफी प्रसिद्ध है और यहां ज्‍यादातर दुधारू पशु आते हैं। मध्‍यप्रदेश, हरियाणा तक के पशुपालक यहां पशु खरीदते हैं। पहलू खान की एक ही गलती थी और वो मुस्लिम होना। अपने आप को गौरक्षक कहने वाले गुण्‍डों ने उन्‍हें थोड़ी दूर जाने पर ही पकड़ लिया और पिकअप वैन के ड्राइवर (जो कि हिन्‍दु था) को जाने दिया और बाकी सबको मारना शुरू किया। इसी पिटाई से पहलू खान की मौत हो गई। ये इस तरह की कोई पहली घटना नहीं थी और अंतिम भी प्रतीत नहीं होती है। राजस्थान आप कैसे भूल सकते है |
पूरे देश में संघ परिवार (आरएसएस) से जुड़े संगठनों ने पिछले लम्‍बे समय से गौरक्षा दल खड़े किये हैं जिनका एकमात्र उद्देश्‍य गाय के नाम पर भारत की जनता का साम्‍प्रदायिकीकरण करना है। इनके आतंक की वजह से बहुत सारी जगहों पर किसानों ने गाय खरीदना छोड़कर भैंस खरीदना शुरू कर दिया है क्‍योंकि ये घर के लिए दुधारू गाय ले जाते किसानों को भी पकड़कर मारते हैं।  यहां तक कि मरे पशुओं का खाल उतारने वाले दलितों को भी मारते हैं। 2 अगस्‍त 2014 को दिल्‍ली में शंकर कुमार को इन्‍होंने जान से मार दिया था। शंकर कुमार दिल्‍ली महानगरपालिका की उस कॉण्‍ट्रेक्‍टर कम्‍पनी का कर्मचारी था जिसका काम मरे हुए पशु उठाना था। उस दिन भी वो मरे हुए पशु अपनी गाड़ी में ला रहा था पर उस पर इन गौरक्षकों का कहर बरपा। ऊना, गुजरात में कुछ महीने पहले चार दलित नौजवानों की बर्बर पिटाई की घटना भी आप सबको याद ही होगी। पिछले ही महीने दिल्‍ली में शर्मिला नाम की एक महिला को इन गौरक्षक गुण्‍डों ने बूरी तरह मारा क्‍योंकि जब उस महिला की तरफ गाय भागी तो उसने बचने के लिए उसकी तरफ पत्‍थर फेंक दिया था।
भारत के ज्‍यादातर राज्‍यों में गाय की हत्‍या पहले से ही बैन है और बीफ के नाम पर जो मांस मिलता है वो भैंस का होता है। ये बात हर कोई जानता है पर नरेन्‍द्र मोदी ने 2014 के चुनाव प्रचार से पहले इसे बड़ा मुद्दा बनाकर जनता को गुमराह किया। मोदी ने कहा कि गाय की हत्‍या हो रही है और भारत का मांस निर्यात लगातार बढ़ रहा है। लोगों को लग रहा था कि सत्‍ता में आते ही मोदी ये मांस निर्यात रोक देंगे।  लेकिन सत्ता में आने के बाद मोदी का असली चेहरा भी सामने आ गया और उन्होने चीन को भारत से सीधे बीफ खरीदने की पेशकश शुरू कर दी। चीन अभी तक भारत का बीफ वियतनाम के रास्ते खरीदता रहा है पर मोदी के “कड़े प्रयासों” से जनवरी 2017 यानि इसी साल के शुरू में चीन भारत से सीधे बीफ खरीदने पर राजी हो गया है। चीन के अधिकारियों ने भारत का दौरा कर 14 पशुवधगृह भी तय कर दिये हैं जिनसे ये बीफ खरीदा जायेगा। हाल ही में यूपी की योगी सरकार द्वारा अवैध पशुवधगृहों पर लगी रोक को भी इसी रोशनी में समझा जा सकता है। जब सरकारी तौर पर अधिकृत पशुवधगृह कम होंगे और सारे अवैध बंद हो जायेंगे तभी तो उनको किसानों की भैंस सस्ते में मिलेगी। ये वैसा ही है जैसा रिलायंस फ्रेश का र खुलवाने के लिए अवैध के नाम पर सब्जी की छोटी दुकानों, रेहड़ी, पटरी वालों को हटाना। स्पष्ट है कि ये भावना भड़काकर बड़े पूँजीपतियों की ही सेवा कर रहे हैं।
पिछले लम्बे समय से आरएसएस से जुड़े संगठनों ने  भावनाओं को भड़काकर जगह जगह गौरक्षा के नाम पर गुण्‍डा दल खड़े किये हैं। इण्‍टरनेट पर ये गौरक्षा दल लोगों की बर्बर तरीके से पिटाई के वीडियो डालते हैं और इनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती है। ये वीडियो आपको इस्‍लामिक स्‍टेट के आत‍ंकियो के वीडियो जैसे ही लगेंगे बशर्ते आपके अन्‍दर इंसानियत बाकी हो।
सवाल है कि क्‍या सच में इनका मकसद गाय की रक्षा करना है? अगर देखा जाये तो जिन जिन राज्‍यों में गौरक्षा के कानून लागु हुए, गौरक्षा दलों का आतंक बढ़ा, वहां के किसानों ने गाय की जगह भैंस पालना शुरू कर दिया क्‍योंकि किसान के लिए पशुपालन भावना का नहीं बल्कि आर्थिक सहारे का मसला है। हरियाणा, उत्‍तरप्रदेश, गुजरात, राजस्‍थान जैसे राज्‍यों में भैंसो की तादाद गायों से कहीं ज्‍यादा है। महाराष्‍ट्र में गौहत्‍या पर तो पहले से ही बैन था पर देवेन्‍द्र फडनवीस की सरकार ने बैलों और साण्‍डों की हत्‍या पर भी बैन लगा दिया जिसकी वजह से गौवंश का पूरा मार्केट तबाह हो गया है। किसानों के लिए बैल खरीदना नुकसान का सौदा बन गया है। पूरे महाराष्‍ट्र में इस समय 7.5 लाख आवारा गौवंश खुले घूम रहे हैं और गांवों-शहरों में एक्‍सीडेण्‍ट करवाने के साथ-साथ गांवों में किसानों की फसलों को बर्बाद कर रहे हैं।
जाहिर है कि इस पूरी गुण्‍डागर्दी के पीछे कहीं से भी गायों का भला करना नहीं है बल्कि समाज में लगातार बढ़ रही आर्थिक खाई से ध्‍यान भटकाना है। 29 मार्च को ही मोदी सरकार ने लोकसभा में बताया था कि उन्‍होने 2013 के मुकाबले 2015 में  90 प्रतिशत सरकारी नौकरियां खत्‍म कर दी हैं। बेरोजगारी अपने चरम पर है, तमाम सारी प्राइवेट कम्‍पनियां छंटनी कर रही है। स्‍टेट बैंक ऑफ इण्डिया का मासिक न्‍यूनतम बैलेंस बढ़ाकर पैसा जमा किया जा रहा है ताकि उद्योगपतियों को लोन दिया जा सके या फिर डिफॉल्‍सटर्स के कारण पैदा हुए बूरे लोन को कम किया जा सके। रेलवे जैसे महत्‍वपूर्ण सेक्‍टर को बेचने की शुरूआत हो चुकी है। हबीबगंज, भोपाल का स्‍टेशन बंसल को बेच दिया है। मोदी के करीबी गौतम अडानी की सम्‍पति 2014-2015 में दोगुना हो गयी थी।
कार्टूनिस्‍ट तन्‍मय त्‍यागी की नजर से


आर्थिक मुद्दों से ध्‍यान हटाने के लिए मोदी सरकार कभी गौरक्षा तो कभी लवजिहाद तो कभी राममंदिर जैसे भावनात्‍मक मुद्दे उठाकर जनता को गुमराह कर रही है।
हमें इनकी असलियत को समझना होगा अन्‍यथा हमारा देश भी उसी राह चल पड़ेगा जिस राह पर आज अन्‍य धार्मिक कट्टरपंथी देश चल रहे हैं। तालिबान भी जब अफगानिस्‍तान में आया था तो इसी तरह धर्म के नाम पर लोगो को ब्‍लैकमेल करते हुए आया था और उसके बाद उसने वहां क्‍या किया, ये सबको मालुम है। पाकिस्‍तान में भी 14 अप्रैल के दिन मरदान विश्‍वविद्यालय में एक छात्र को हजारों की भीड़ ने ईशनिन्‍दा के नाम पर पीटकर मार डाला।  जाहिर है कि अगर धर्म का सार्वजनिक जीवन में प्रवेश होगा तो इस तरह की घटनायें ही सामने आयेंगी।
हमारे देश के महान शहीद भगतसिंह ने कहा था “लोगों को परस्पर लड़ने से रोकने के लिए वर्ग चेतना की ज़रूरत है। ग़रीब मेहनतकश व किसानों को स्पष्ट समझा देना चाहिए कि तुम्हारे असली दुश्मन पूँजीपति हैं, इसलिए तुम्हें इनके हथकण्डों से बचकर रहना चाहिए और इनके हत्थे चढ़ कुछ न करना चाहिए।  संसार के सभी ग़रीबों के, चाहे वे किसी भी जाति, रंग, धर्म या राष्ट्र के हों, अधिकार एक ही हैं। तुम्हारी भलाई इसी में है कि तुम धर्म, रंग, नस्ल और राष्ट्रीयता व देश के भेदभाव मिटाकर एकजुट हो जाओ और सरकार की ताक़त अपने हाथ में लेने का यत्न करो।”
शहीद भगतसिंह की बात को ध्‍यान में रखते हुए हमें आज इन संघी फासीवादियों की असलियत समझने की जरूरत है। ये नाम तो हिन्‍दु धर्म का लेते हैं पर इनका असली धर्म अडानी, अम्‍बानी, जिन्‍दल, मित्तल का मुनाफा है। जब भी ये धर्म का नाम लेकर हमारे बीच आयें तो इनकी आर्थिक नीति पूछने की जरूरत है। हमें ये ध्‍यान रखने की जरूरत है कि अगर हम आज नहीं सम्‍भले तो हमारी आगे आने वाली पीढियां इसकी कीमत चुकायेंगी।
जाति धर्म के झगड़े छोड़ो, सही लड़ाई से नाता जोड़ो
फासीवाद का एक इलाज, इंकलाब जिन्‍दाबाद


नोट - ये लेख नौजवान भारत सभा (http://naubhas.in) के माध्यम से ली गई है

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