साम्प्रदायिक फासीवादी भाजपा सरकार व संघ परिवार अपने एजेण्डा को थोपकर मेहनतकश जनता व प्रगतिशील तथा जनवादी ताकतों पर कहर बरपा रहे हैं। - इंक़लाबी कारवाँ

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Tuesday, 30 January 2018

साम्प्रदायिक फासीवादी भाजपा सरकार व संघ परिवार अपने एजेण्डा को थोपकर मेहनतकश जनता व प्रगतिशील तथा जनवादी ताकतों पर कहर बरपा रहे हैं।



साम्प्रदायिक फासीवाद को ध्वस्त करो! जनता की फौलादी एकजुटता कायम करो!



आज हम एक भयंकर उथल-पुथल के दौर में जी रहे है। साम्प्रदायिक फासीवादी भाजपा सरकार व संघ परिवार अपने एजेण्डा को थोपकर मेहनतकश जनता व प्रगतिशील तथा जनवादी ताकतों पर कहर बरपा रहे हैं। देश में मेहनतकश दलित आबादी और धार्मिक अल्पसंख्यक आबादी पर कट्टरपंथी-जातिवादी ताकतों के हमले आम हो चले है। साथ ही जनता में नफरत-अफवाहें फैलाकर मॉब-लिंचिंग (भीड़ द्वारा हत्या) की घटनाएँ लगातार बढ़ रही हैं, जो साफ तौर पर संघी फासीवाद की समाज में पैठ को दर्शाती हैं। एक तरफ नरेन्द्र मोदी दलितों पर हमले पर अफसोस जताते हैं, दूसरी ओर भाजपा-संघ परिवार के लोग इन हमलों और हत्याओं में संलग्न होते हैं। असल में अपने राजनीतिक लाभ के लिए मोदी सरकार ने ऐसे फासीवादी गुण्डा-गिरोहों को खुली छूट दे रखी है। तभी ऐसी भीड़ खुलेआम अफ्राजुल के हत्यारे शम्भूलाल के पक्ष में रैली कर सकती है और उदयपुर सेशन कोर्ट के दरवाजे पर भगवा झण्डा फहरा सकती है। यह तस्वीर साफ तौर पर बता रही है कि हमारे देश में फासीवादी बर्बरता लगातार अपने पाँव पसार रही है। साथ ही, आज मोदी सरकार हर प्रकार के जन-प्रतिरोध को दबाने के लिए पूरी राज्य-मशीनरी का इस्तेमाल कर दमन, अत्याचार में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रही हैं; चाहे दलित उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठाने वाले भीम आर्मी के संस्थापक चन्द्रशेखर ‘आजाद‘ पर रासुका लगाने का मामला हो या असम में किसान नेता अखिल गोगोई का मामला हो (जो फिलहाल रिहा हैं)। साथ ही योगी सरकार द्वारा यूपीकोका जैसे काले कानून बनाने की तैयारी कर जनता के जनवादी हक-अधिकारों पर सीधा हमला किया जा रहा है।
आज पूरे देश में धार्मिक कट्टरता व जातिवादी उन्माद पैदा करने का मकसद एकदम साफ है — मेहनतकश जनता मोदी सरकार से हर साल दो करोड़ रोजगार का सवाल न पूछे; छात्र-नौजवान शिक्षा के क्षेत्र में कटौती पर सवाल न पूछें; ‘अच्छे दिन’ के वादे पर, काला धन, महँगाई पर रोक लगाने से लेकर बेहतर दवा-इलाज के मुद्दों पर बात न हो। ऐसे में साम्प्रदायिक फासीवाद के लिए ज़रूरी है कि वह देश के मजदूरों, निम्नमध्यवर्ग और गरीब किसानों के सामने एक नकली दुश्मन खड़ा करें। इसलिए आज दलित व अल्पसंख्यक आबादी को ‘‘अखण्ड राष्ट्र‘‘ और ‘‘हिन्दू संस्कृति‘‘ के लिए खतरा बताकर, मेहनतकश जनता के बीच नफरत की दीवारें खड़ी की जा रही है ताकि अम्बानी-अडानी जैसों की मुनाफे की लूट पर पर्दा डाला जा सके। ज़रा सोचिये दोस्तो! क्या यह सच नहीं है कि जब-जब देश में बेरोजगारी, मंहगाई, गरीबी का संकट गहराया है, तब-तब शासक वर्गों ने कभी मंदिर-मस्जिद, गौरक्षा, तो कभी लव जिहाद और घर वापसी आदि जैसे नकली मुद्दे खड़े करके जनता को बांटने का काम किया है?

साभार -भारत नौजवान सभा

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