बेरोजगार युवा
छात्र हो किसान हो या बेरोजगार युवक हो । खुदकुशी लगातार जारी है । साल दर साल जारी है । और सत्ता किसी की भी रहे हालात इतने बदतर हैं कि बीते 15 बरस के दौर में 99 हजार 756 छात्रों ने देश में खुदकुशी कर ली। किसानों की खुदकुशी इन्ही 15 बरस में 2 लाख 34 हजार 642 तक हो गई । और बेरोजगारी भी कैसे देश के युवा को लील रही है, उसकी खुदकुशी के आंकड़े भी 1 लाख 44 हजार 974 है । और साल दर साल छात्र, किसान और बेरोजगारों की खुदकुशी के ये आंकडे सरकारी संगठन एनसीआरबी यानी नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के हैं । यानी बरस दर बरस खुदकुशी देश में कोई रुदन पैदा नही करती । और इन 15 बर के दायरे में कोई राजनीतिक दल ये कह नही सकता कि उसने सत्ता नहीं भोगी।
क्योंकि न 15 बरस में अटल बिहारी वाजपेयी से लेकर मनमोहन सिंह की सत्ता रही है । और मौजूदा वक्त में मोदी की सत्ता में भी खुदकुशी ना तो छात्रों की रुकी है ना किसानों की ना ही बेरोजगारों की। और सत्ता के लिये सत्ताधारियों से गठबंधन इन 15 बरस में देश की 37 राजनीतिक दलों ने किया । तो दोष दिया किसे जाये? कटघरा बनाया किसके लिये जाये? या फिर उलझ जाया जाये कि किसकी सत्ता में सबसे ज्यादा मौत हुई । सोचिये जो भी लेकिन इस सच के आईने में उस घने अंधेरे पर प्रहार जरुर कीजिये जो सत्ता की राजनीति तले ऐसे सच को भी सही तरीके से बता नहीं पाती । और लगता है जिन्दगी मौत पर भारी हो चली है और उसी जिन्दगी की जद्दोजहद में समाज कुंद हो चला है ।
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