किसानों की बदहाली और वोट बैंक की राजनीति करते सत्ताधारी - इंक़लाबी कारवाँ

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Wednesday, 12 April 2017

किसानों की बदहाली और वोट बैंक की राजनीति करते सत्ताधारी


#किसान-मजदूर वह जीवन शक्ति है जिसके सहारे तमाम लोग जीवन भर बमुश्किल से अपना पेट भरते हैं और जिंदा रहते हैं ।मोतीहारी में आंदोलनरत किसानों से बिहार सरकार उनके बकाया भूगतान के मुद्दे पर बातचीत करने के बजाये दमन करती है ।आंदोलनरत किसानों मे से आत्मदाह करनेवाले एक किसान की मृत्यु बेहद पीड़ा दायक है ।

बिहार सरकार के निरंकुश मुखिया नीतीश कुमार जो अपने नाम के साथ सुशासन बाबू का टैग निर्लज्ता के साथ लगाते हैं ,अहिंसा की बात करनेवाले गांधीजी के चम्पारण किसान विद्रोह के शताब्दी वर्ष बड़े हो -हंगामा ,पूरे ढोंग-दिखावे के साथ मना रहे हैं ।बिहार सरकार के निर्मम हिंसक दमन पर गांधीवादी बरहरुपये क्या कहेंगे ?जिस बिहार में किसान आंदोलनकारी के उपर जूल्म ठाया जा रहा है ,लाठियां, गोलियां चलाई जा रही है ।किसान आत्महत्या करने पर मजबूर हैं ।अंधी -बहरी सरकार की कुशासन और ब्यापक सरकारी दमन व भ्रष्टाचार खत्म करने की मांग करनेवाले सांसद पप्पू यादव सरीखे नेताओं को अपमानित कर जेल में कैद करने से जनविद्रोह को दबाया नही जा सकता है ।विद्रोह की आवाज ईमानदार और सशक्त अभिब्यक्ति की गूंज के साथ बिहार के खेतों-खलिहानों में तेजी से फैल रही है ।दमन चाहे जिस रुप में क्यों न हो ?वह हमेशा एक युद्ध जारी रखता है ।यह वक्त अपमानित करनेवालों को जवाब देने और लड़कर ससम्मान अधिकार प्राप्त करने का है ।देशभक्त विद्रोही विद्रोह राष्ट्र के विरुद्ध नहीं सरकार की जनविरोधी नीतियों के विरूद्ध देशहित में करते हैं ।यदि शासक उचित रुप से उतरदायित्वों का पालन नहीं करते तो उसे क्रांति द्वारा समाप्त करने का अधिकार समाज को प्राप्त है ।लोकतंत्र में यह जरूरी है कि जनता में इतनी शक्ति हो कि वह अधिकारियों द्वारा अधिकारों के दुरुपयोग के खिलाफ कार्रवाई कर सके ।
               #सुबोधयादव

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