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Tuesday, 20 February 2018

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लेख पुन्य प्रसून बाजपेयी की कलम से
सोचिए जब अच्छे पत्रकार-जज-नौकरशाह-प्रोफेसर ना होंगे ? तो क्या होता देश का
सोचिए जब अच्छे पत्रकार-जज-नौकरशाह-प्रोफेसर ना होंगे ? तो क्या होता देश का
जो हालात मीडिया के हैं, जिस तरह की पत्रकारिता हो रही है, उसमें ये
सवाल तो जहन में आता ही है कि जब हालात बदलेंगे, तब कौन सी पत्रकारिता
होगी। क्या मौजूदा वक्त की पत्रकारिता और मीडिया संस्धानों की भूमिका 2019
की चुनाव के तर्ज पर जनादेश के साथ बदल जायेगी। ये सवाल उतना ही मौजूं है,
जितना मौजूं है 2014 के सपनों का चौथे बरस में फंस जाना । याद किजिये 2014
में समूचा मिडिल क्लास किस रौ में बह रहा था। किस उम्मीद और आस को पाले
हुआ था । और देश के भीतर चली गुजरात की हवा एक ऐसे मॉडल के तौर उभर रही थी
जिसमें शहर में कारपोरेट के लिये सुनहरी हवा थी । गांव या कहे हाशिये पर
पड़े गुजरात के ग्रामीण जीवन के लिये आभासी मॉडल था कि दुनिया शहरों में
बदली है तो गांव में भी बदल जायेगी। और यही इल्यूजन जब 2014 से 2017 तक देश
की हवा में समाया तो पहला लाभ साथ खड़े कारपोरेट को मिला। लकीर बारीक है
पर पहले तीन बजट का लाभ बाखूबी उस बाजार इक्नामी के जरीये सत्ता के करीबियो
ने उठाया जो पूंजी से पूंजी बनाने के खेल में माहिर थे। पूंजी देश की,
मुनाफा निजी। और इस निजीपन के मुनाफे के दौर ने ही चुनावी राजनीति को महंगा
दर महंगा किया । कैसे एक राजनीतिक पार्टी सरकार से बड़ी हो गई ।
नगालैंड-त्रिपुरा सरीखा छोटा सा राज्य हो या यूपी - गुजरात सरीखा बडा राज्य
। चुनाव प्रचार कितना महंगा हुआ । कितना पैसा बहा--बहाया गया । कहां से आ
रहा है इतना रुपया । और कहा से आता रहा ये रुपया । कोई राजनीतिक दल ना तो
फैक्ट्री चलाता है या ना ही कोई इंडस्ट्री । जो उत्पादन हो । माल बिके ।
मुनाफा हो । और उस पैसे के बूते चुनावी प्रचार-प्रसार में बे-इंतिहा रुपया
बहाया जाये । कोई तो होगा जो पूंजी देता होगा । कोई तो होगा जो पूंजी के
बदले ज्यादा बडा मुनाफा बनाने की सोच पाले हुआ होगा । फिर वही सवाल लकीर
महीन है इसे समझे । चौथे बजट को ही परख लें । हेल्थ इंश्योरेन्स । पांच लाख
के इश्योरेन्स के लिये कम से कम तो पांच हजार रुपये सालाना किश्त तो देनी
ही होगी ।
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इस ब्लॉग पर लिखी गई पोस्ट किसी पत्रकार या लेखक का है , ये ब्लॉग किसी राजनीतक दल या पार्टी का समर्थन नही करता ,मेरा मकसद सिर्फ सच को जनता तक परोसना है ,आज गोदी मिडिया के समय में जनता की आवाजो को पहुचाने की कोशिश कर रहा हूँ ,आप सब मेरी मदद करे "शुक्रिया "
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