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Friday, 16 February 2018

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लेख पुन्य प्रसून बाजपेयी की कलम से
पकौड़ा रोजगार या बेरोजगारों के लिये पकौड़ा-चाय-पुन्य प्रसून वाजपेयी की कलम से
पकौड़ा रोजगार या बेरोजगारों के लिये पकौड़ा-चाय-पुन्य प्रसून वाजपेयी की कलम से
1947 : डेढ आने का बेसन । एक आने का आलू-प्याज । एक आने का तेल । तीन पैसे
का गोयठा । कहे तो गोबर के उबले । चंद सूखी लकड़ियां । और सड़क के किसी
मुहाने पर बैठ कर पकौडा तलते हुये एक दिन में चार आने की कमाई। 2018 : 25
रुपये का बेसन । दस रुपये का आलू प्याज । 60 रुपये का सरसों तेल । सौ रुपये
का गैस । या 80 रुपये का कैरोसिन तेल । और सड़क के किसी मुहाने पर ठेला
लगाकर पकौड़ा तलते हुये दिन भर में 200 से तीन सौ रुपये की कमाई । करीब
चार आने खर्च कर चार आने की कमाई जब होती थी तब हिन्दुस्तान आजादी की खुशबू
से सराबोर था। करीब 31 करोड़ की जनसंख्या में 21 करोड़ खेती पर टिके थे।
और पकौड़े या परचून के आसरे जीने वालो की तादाद 50 से 80 लाख परिवारों की
थी । और अब ठेले के अलावे दो सौ रुपये लगाकार दो सौ रुपये की कमाई करने
वाला मौजूदा हिन्दुस्तान विकास के अनूठे नारों से सराबोर है । सवा सौ करोड़
की जनसंख्यामें 50 करोड़ खेती पर टिके है। और पकौड़े या परचून के आसरे
जीने वालों की तादाद 10 से 12 करोड़ परिवारों की है । तो आजादी के 71 वें
बरस में बदला क्या या आजादी के 75 वें बरस यानी 2022 में बदलेगा क्या।
नेहरु के आधी रात को सपना देखा।
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