— रवीश कुमार
हम भूलते रहें वो खेलते रहें. यह खेल जबतक खेल है कोई दिक्कत नहीं, न आपको, न उनको... क्योंकि दोनों ही मर्ज़ीनुसार पाले बदल रहे होते हैं. लेकिन जब पालों के बदलने के कारणों में — किसी लिन्चिंग-खून के धब्बे, किसी तीरथ, सीमा, नौकरी, नोट ... ... ...के ख़ूनी-होने-को-आतुर किस्से — दिखने लगें तब वह खेल खेल नहीं रह जाता; इतनी तो समझ आप बेशुमार-समझ के दावों करने वालों में होगी ही कि क्या क्यों हो रहा है, होना सही है या गलत और कि आप का इसमें क्या रोल है?इसी बात को रवीश ने कुछ यों कहा — "भारतीय शिक्षा प्रणाली का एक उसूल है. अगला चैप्टर पढ़ने से पहले अच्छा होता है पिछला चैप्टर ठीक से रिवाइज कर लेना. तो अब तो नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी नए साथी हैं. लेकिन 2015 में जब दोनों प्रतिद्वंद्वी के रूप में बिहार के जनता के बीच गए तो उनके मुखमंडल से कितनी फुलझड़ियां ये आप भी देखिए.
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