26 जनवरी की शुभकामनाएं. गणतंत्र आबाद रहे. गण भी आबाद रहे, सिर्फ तंत्र ही तंत्र न रहे. यह आज़ादी इसलिए भी है कि हमारे पास एक ख़ूबसूरत संविधान है. इस किताब के ज़रिए हमने एक झटके में सैकड़ों साल से परंपरा के नाम पर मौजूद बहुत से कबाड़ से अलग कर लिया था. हम बराबरी, समानता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के सपनों की राह पर चल निकले हैं. बहुत कुछ हासिल नहीं हो सका है मगर इतना भी कम हासिल नहीं है कि हम जश्न न मना सकें.
यह जश्न इसलिए भी मनाते रहना है ताकि हम सभी को संविधान के आदर्श याद रहें. आज फिर से हम कमज़ोर होने लगे हैं. चुप रहने लगे हैं. अफसोस इस वक्त भारत में थर्ड क्लास नेता मुख्यमंत्री बन गए हैं. यकीनन थर्ड क्लास हैं. अगर इनके चेहरे पर जाति और धर्म का पाखंड न लिपा गया होता तो यह अपना दस्तख़त करने के काबिल नहीं हैं. आप इनके भाषणों में मौजूद मूर्खता को पहचान लेते और इनकी सभाओं से उठ कर चले जाते.
ये मुख्यमंत्री थर्ड क्लास न होते तो ये संविधान की रक्षा में 25 जनवरी को खड़े नज़र आते. एक फिल्म के बहाने जो लोग उत्पात मचाते रहे और जो लोग उस उत्पात के बहाने सांप्रदायिक गौरव में चुपचाप ढलते रहे उन सबने संविधान की आत्मा को धोखा दिया है. उम्मीद है आने वाले वक्त में भारत इन थर्ड क्लास नेताओं को मुख्यमंत्री पद से हटा देगा. हम इन मूर्खों को महान समझ कर अपने सपनों को इनके हवाले करना बंद करेंगे. ये भारत के संविधान के प्रतिनिधि नहीं हैं. संविधान की बनाई व्यवस्था का लाभ उठा कर पदों पर पहुंचे हुए ये लोग हैं. कोई नौजवान आएगा जो संवैधानिक आदर्शों से लैस होगा और संवैधानिक व्यवस्था की सर्वोच्चता को कायम करेगा.
दौर आते रहेंगे. संविधान पर हमले होते रहेंगे, मगर स्याही छिड़क देने से किताब नहीं मिट जाती है. संविधान की करोड़ों प्रतियां हैं. आप किसी भी प्रति को उठा लीजिए. एक बेहतर नागरिक बनने की दिशा में प्रस्थान कीजिए. निरंतर अभ्यास कीजिए. अपनी कमियों पर भी उसी साहस से बात कीजिए जिस साहस से हम अपने गौरव की बात करते हैं. वो गौरव जाति का नहीं होना चाहिए. संविधान से मिली व्यवस्था के कारण हम जो भी हासिल करते हैं, उसका गौरव गान कीजिए. पगड़ी पहनकर रंगीन मत बनाइये. सब कुछ फिल्म का सेट नहीं है. शादी के समय बारात के स्वागत और गणतंत्र के समारोह में फर्क कीजिए. हाथ में संविधान की किताब लेकर आइये.
बहुत कुछ है जश्न मनाने के लिए. तभी तो 26 जनवरी के दिन फिल्मी गाने खिड़कियों से आकर गुदगुदा जाते हैं. हम फिर से संस्थाओं को हासिल करेंगे. क्या हम आज़ाद जांच एजेंसी, आज़ाद पुलिस व्यवस्था, आज़ाद न्याय व्यवस्था की भी झांकी निकाल सकते हैं? फिलहाल नहीं. मगर इन्हीं व्यवस्थाओं में ऐसे आज़ाद लोग हैं जो अपने अकेले दम पर संविधान की हिफाज़त में खड़े रहते हैं. वैसे लोगों का आज के दिन स्वागत कीजिए. उनके लिए ताली बजाइये. जो किसी नेता के दबाव में झुक कर फाइलों पर दस्तखत करता है, उन्हें भी याद कीजिए चाहे वह न्यायधीश ही क्यों न हो. पहचानिए उस हर शख्स को जो संविधान के समारोह में आने से पहले संविधान को धोखा देकर आता है.
बच्चों को परेड दिखाइये. बच्चों को देश दिखाइए. बोलिए. अपने भीतर जाति अहंकार और धार्मिक मूर्खता से लैस गौरव से मुक्त होने के लिए बोलिए. जब तक आप इनकी जकड़न में हैं, आप संविधान की दी हुई नागरिकता के योग्य नहीं हैं. नागरिक बनिए. आपका नागरिक बनना ही, संविधान का सम्मान है. 26 जनवरी मुबारक.
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