भंसाली की फिल्म ‘पद्मावत’ पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद एक बार न्यूज चैनलों के स्टूडियो में किसिम -किसिम ‘राजपूत योद्धा ‘ नमूदार होने लगे हैं . फिल्म रिलीज हुई तो इंट से इंट बजा देंगे टाइप धमकियों की नई किश्तें आने लगी हैं . एबीपी न्यूज के स्टूडियो में बैठकर चीख रहा एक कथित राजपूत नेता अपने गांव में दीपिका और भंसाली की कब्रें खुदवाने और उन्हें जिंदा या मुर्दा दफन करने का ऐलान कर रहा है तो दूसरे चैनल में एक ‘दाढ़ीधारी राजपूत योद्धा’ देश के कायदे -कानून से खुद को ऊपर समझते हुए फिल्म नहीं चलने देने का अल्टीमेटम दे रहा है . तीसरे -चौथे -पांचवे या छठे चैनल पर भी ऐसे ही ‘योद्धा’ फिल्म के खिलाफ ‘जुबानी नगाड़े’ बजाते नजर आ रहे हैं . एक चैनल पर नथुने फुला फुलाकर जंग का ऐलान करने वाला जंगजू थोड़ी देर बाद दूसरे चैनल पर नजर आता है .
‘हाफ लीवर’ का अभिषेक सोम कल शाम सबसे पहले एबीपी न्यूज पर दिखा लेकिन रात होते -होते कई चैनलों पर विराजमान था . देख कर लग रहा था कि अगर तेज हवा चले तो ये शख्स जमीन पर पांव भी न टिका पाएगा लेकिन देश को हिलाने का दम भरते नजर आ रहे थे . यही वो जनाब हैं , जिन्होंने दीपिका की नाक काटने के बदले एक करोड़ देने का ऐलान किया था . अब उनके लिए कब्र खुदवाकर स्टूडियो पहुंचे हैं . अपने गली -मोहल्लों में भले ही उनके साथ पचीस -पचास लोग न हों लेकिन यहां वो देश के आठ करोड़ राजपूतों की तरफ से आकाशवाणी और भविष्यवाणी कर रहे थे . उनका दावा था कि अगर फिल्म रिलीज हुई तो आठ करोड़ राजपूत 2019 में मोदी को उखाड़ फेंकेगे . दिखने में वो जितने हल्के लग रहे थे , बातों के उतने ही भारी बम गिरा रहे थे . कैमरे के सामने पब्लिसिटी के लिए दिखावटी उत्तेजना का लबादा ओढे ये साहब यहां तक कह गए कि देश में आज भी राजपूत महिलाएं इस फिल्म के खिलाफ जौहर करने को तैयार हैं .
इसी तरह करणी सेना के ‘सैनिकों’ ने भी मोर्चा थाम लिया है . लंबी दाढ़ी वाले साहब तो न एंकर को कुछ समझ रहे थे , न देश के सिस्टम को , न कानून को , न सुप्रीम कोर्ट . ये सिंह , वो सिंह , ये ठाकुर , वो ठाकुर , ये राणा , वो महाराणा . न जाने कहां -कहां से आए ऐसे ‘योद्धा ‘ इस देश की कानून -व्यवस्था को खुले आम चैलेंज कर रहे हैं . फिल्म देखने वालों ने कह दिया कि इस फिल्म में पद्मवती का मान दिखता है , लेकिन ये किसी की सुनने -मानने को ही तैयार नहीं हैं .
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इनकी ये हिमाकत देश की सत्ता के इकबाल पर सवालिया निशान की तरह है . गुजरात से लेकर बिहार तक के सिनेमा हॉलों और सड़कों पर उत्पात की तस्वीरें आने लगी है . करणी सेना के मुखिया लोकेन्द्र कालवी ने दावा किया है कि फिल्म रिलीज के दिन देश भर में जनता कर्फ्यू लगेगा .सेंसर बोर्ड की मंजूरी और सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी कई राज्यों में सिनेमा हॉल के मालिक डरे हुए हैं . सड़कछाप लंपटों और उत्पाती दस्तों से उनका डरना स्वाभाविक भी है . सवाल ये है कि जब ये सब हो रहा है तो राज्य सरकारों का क्या दायित्व बनता है ?
कल शाम से लगातार सोशल मीडिया पर बहुत से लोगों ने लिखा है कि कानून को चुनौती देने वाले ऐसे तत्वों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए . सरकारों ने अगर इनके खिलाफ उकसाने और भड़काने के मामले दर्ज करने शुरु किए तो इनकी हिमाकत को लगाम लगेगी लेकिन क्या ऐसा होगा ? सूरज पाल अमू नाम के राजपूत नेता ने कहा कि अगर फिल्म रिलीज हुई तो देश टूटेगा , किसी ने कहा चाहे हमें अपनी जान देनी पड़े , हम ये फिल्म नहीं चलने देंगे . उकसाने वाले ऐसे 'बयानवीर योद्धाओं' के खिलाफ केस दर्ज होने लगे तो एक -एक करके सभी अपने दड़बे में लौटने लगेंगे लेकिन ये होगा नहीं . सवाल वोट बैंक का जो है . इसी से आप समझ लीजिए कि सबकी मिलीभगत है .
‘ पद्मावत’ के खिलाफ ये सब तब हो रहा है , जब सुप्रीम कोर्ट ने कुछ राज्यों में ‘पद्मावत’ बैन के खिलाफ फैसला दे दिया है . सेंसर बोर्ड की मंजूरी पहले मिल चुकी है . उसके बाद भी ये सबके सब खुलेआम धमकी दे रहे हैं . चेतावनी दे रहे हैं . ललकार रहे हैं . किसी भी कीमत पर फिल्म को नहीं चलने देने का अल्टीमेटम देकर देश के कायदे -कानून को सीधे सीधे चुनौती दे रहे हैं . करणी सेना के जीवन सिंह सोलंकी ने कहा, 'कहीं भी हिंसा होगी उसके लिए जिम्मेदार सुप्रीम कोर्ट होगा. कौन होता है सुप्रीम कोर्ट बैन हटाने वाला'. वहीं, दूसरी तरफ रायपुर के क्षत्रिय महासभा के प्रदेश अध्यक्ष विक्रमादित्य सिंह जूदेव ने यहां तक कह दिया कि उनका समाज सुप्रीम कोर्ट के फैसले को नहीं मानेगा. उन्होंने यह भी कहा है कि फिल्म 'पद्मावत' के खिलाफ विरोध जारी रहेगा.
कुछ नेताओं ने कहा है कि जिन सिनेमा हॉलों में पद्मावत दिखाई जाएगी तो उसमें आग लगा देंगे . चंद समर्थकों के दम पर अपनी दुकानें चलाने वाले ये राजपूत नेताओं की हिमाकत देखिए कि ये खुलेआम कह रहे हैं कि अगर राज्यों में हिंसा हुई तो उसके लिए सुप्रीम कोर्ट जिम्मेदार होगा . ये सब हो रहा है और केन्द्र और राज्य सरकारों की तरफ से चुप्पी है . बीजेपी का कोई नेता राजपूत समाज के इन स्वयंभू ठेकेदारों की निंदा करना तो दूर, कुछ बोल तक नहीं रहा है . हरियाणा और राजस्थान सरकार के मंत्रियों की तरफ से कहा गया है कि हमारा पक्ष जाने बिना सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुना दिया है इसलिए हम दूसरे विकल्पों पर विचार कर रहे हैं . मतलब साफ है कि सियासी फायदे के लिए सूबे की सरकारें ‘पद्मावत’ के विरोधियों के साथ है .
क्या इन छुटभैये नेताओं की इतनी हैसियत है कि पूरे देश के कानून और सिस्टम को यूं ठेंगे पर रखकर जो चाहें सो करने में कामयाब हो जाए ?
क्या भीतरखाने सबकी मिली भगत है क्योंकि राजपूत वोट का सवाल है ? देश सिस्टम से चलेगा या चंद नेताओं की धमकियों और मनमानी से ?
जब इतना तमाशा हो रहा है तो पीएम मोदी की चुप्पी क्यों है ?
देश की सरकार के मुखिया होने के नाते वो क्यों नहीं ऐलान करते कि सेंसर और सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद जो भी हंगामा करेगा , उसके खिलाफ कार्रवाई होगी ?
बीजेपी के सर्वोच्च नेता होने के नाते पीएम मोदी क्यों नहीं सभी मुख्यमंत्रियों से कहते कि ये नाटक अब बंद होना चाहिए ?
सारे सवालों का रुख अब पीएम मोदी की तरफ है .
सभार
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