सरकार क्यों नहीं देती है कि अपनी बहालियों का आंकड़ा
प्रधानमंत्री ने हाल के इंटरव्यू में रोज़गार को लेकर अपना आंकड़ा नहीं बताया. कम से कम विभागों के हिसाब से बताया जा सकता था ताकि लोग ख़ुद भी चेक करें. उन्होंने आई आई एम बंगलौर के अध्ययन का हवाला देते हुए कहा कि हर महीने छह सात लाख नौकरियां पैदा हो रही हैं. वित्त मंत्रालय की एक रिपोर्ट है कि सिर्फ केंद्र सरकार की नौकरियों में 4 लाख से अधिक पद ख़ाली हैं. प्रधानमंत्री कम से कम उसी पर बोल देते कि जल्दी भरेंगे. अब मेरे अभियान के बाद भरना पड़ गया तो क्या मज़ा. भरना तो पड़ेगा ही.
आप महेश व्यास के बारे में जान गए होंगे. महेश व्यास की संस्था CENTRE FOR MONITORING INDIAN ECONOMY PVT LTD बांबे स्टाक एक्सचेंज के साथ मिलकर सर्वे करती है. आप इसकी साइट पर जाकर रोज़गार संबंधित सर्वे के बारे में जान सकते हैं.
महेश ने बिजनेस स्टैंडर्ड के अपने कॉलम में आई आई एम बंगलौर के घोष एंड घोष के सर्वे का मज़ाक उड़ाया है. उनका कहना है कि EPFO, ESIC NPS का डेटा तो पब्लिक होता नहीं, लगता है कि इन प्रोफेसरों को ख़ास तौर से उपलब्ध कराया गया है! इस एक लाइन में आप खेल समझ सकते हैं.
महेश व्यास का कहना है और जिससे किसी को एतराज़ भी नहीं होना चाहिए. वो कुलमिलाकर यही कह रहे हैं कि सरकार को ही अपना डेटा पब्लिक कर देना चाहिए. यह काम बहुत जल्दी में किया जा सकता है. कम से कम पता तो चले कि सरकारी नौकरियां कितनी हैं. फिर किसी और के अध्ययन के सहारे नौकरियों पर ख़ुश होने की ज़रूरत नहीं रहेगी. अपना आंकड़ा रहेगा.
उनकी बात में दम है कि आई आई एम बंगलौर के घोष द्वय की रिपोर्ट में कई तरह के झोल हैं. फिर भी उन्होंने एक तरह का अनुमान लगाया है. मैंने भी नेशनल सैंपल सर्वे के आधार पर एक तरह का अनुमान लगाया है. इससे अच्छा है कि सरकार बता दे कि कम से कम उसके यहां कितना रोज़गार पैदा हुआ?
जैसे महेश व्यास ने 2 जनवरी के कॉलम में लिखा था कि देश भर में सरकारी नौकरियों में 2 करोड़ 30 लाख लोग काम कर रहे होंगे लेकिन डॉ पुलक घोष और सौम्यकांति घोष बता रहे हैं कि 1 करोड़ 70 लाख ही लोग काम कर रहे हैं. अब यहीं पर साठ लाख का अंतर आ गया. क्या बेहतर नहीं होता कि सरकार विभाग दर विभाग नौकरियों के आंकड़े प्रकाशित कर दे. घोष युग्म के आंकड़ों से तो सरकारी नौकरियां घटी हैं!
महेश व्यास का कहना है कि घोष के अध्ययन से यह नहीं पता चलता कि पांच लाख रोज़गार था जो बढ़कर 11 लाख हुआ यानी बेस लाइन नहीं है जिससे पता चले कि पहले कितना था, फिर कितना हुआ. BSE-CMIE के अध्ययन के अनुसार 2017 में कुल रोज़गार 40 करोड़ था. अब अगर इसमे सत्तर लाख जोड़ देंगे तो इसका मतलब यह हुआ कि रोज़गार में वृद्धि 1.7 प्रतिशत की हुई. यह बहुत तो नहीं है. आगे आप उनका लेख बिजनेस स्टैंडर्ड में पढ़कर खुद भी समझ सकते हैं.
एक प्रतिशत के अमीर होने की ख़बर मीडिया से ग़ायब
ख़ुशी की बात है कि भारत में 1 प्रतिशत लोग और अमीर हुए हैं. पहले उनके पास 58 फीसदी संपत्ति थी अब देश की 73 प्रतिशत संपत्ति हो गई है यानी एक प्रतिशत अमीर और भी अमीर हो गए हैं. टीवी पर कौन सबसे अमीर का शो देखिए. कितने ग़रीब हो गए, यह तो देखने को मिलेगा नहीं.
दूसरी तरफ 67 करोड़ ग़रीब और ग़रीब हुए हैं. इतनी बड़ी आबादी की संपत्ति में सिर्फ 1 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. Oxfam की इस रिपोर्ट को आप अख़बारों में खोजिए. मैंने तीन अखबार खोजे, काफी बड़े वाले. दो में तो ख़बर भी नहीं थी, और एक में भीतर के आखिरी पन्नों में कहीं किनारे दबी मिली थी.

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